वाह रे खुदा........
केसी ये जिन्दगी बनाई,
कल रात मुझे एक सपना आया,
बिछङा हुआ चेहरा पलको मेँ आया,
कुछ उलट था अतीत,
या वो पलट गया ।
सब कुछ बस बंद नयनो मेँ देखता गया ।
वो रात फिर से अपनी आयी,
आज बिना देखे कोई करामात छायी ,
वाह रे खुदा........
केसी ये जिन्दगी बनाई,
जिसे हम कब के भुल गए,
वो केसे याद आई,
जिसने कभी हमको नजरोँ से देखा नही ,
वो केसे मुस्करा के पास आई ।
वाह रे खुदा........
केसी ये जिन्दगी बनाई,
जब कमी थी किसी की कोई ना आया,
अब ये कोनसा तोहफो का पैगाम लाया,
जब रात ना कटती तब कोई सपना भी न आया
फिर आज भरी नीँद मेँ कहा से आया,
वाह रे खुदा........
केसी ये जिन्दगी बनाई।
इजहार का हौसला न था,
शायद तुझे तो ये पता था,
फिर भी ये खेल तेरा हैँ,
पर अब ये समय मेरा हैँ,
मजबुर हू कुछ कह नही सकता,
फिर भी वो मेरा हो ...,... ।
वाह रे खुदा........
इससे ज्यादा और क्या दर्द दे सकता हैँ,
अब और "अजनबी" तेरे लिए कितना भटक सकता हैँ ।
वाह रे खुदा........
केसी ये जिन्दगी बनाई,
क्या खुद के लिए भी यही कहानी बनाई?
-Shr.... अजनबी
No comments:
Post a Comment