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June 14, 2015

हंसी याद आयीं..

कल पल भर के लिए
तेरी हंसी ज़वा हो उठी ।
अकेला था पुरानी 'गलियों' में
जहा तू कभी कुछ कह ना सकी
अपनी हंसी अजनबी से छिपा ना सकी।

फिर भी तेरी बात वो बदरा आज कह बैठी।
तेरी यादो में मुझे खंगाल बैठी

यू कदम वही रूक गए
कुछ यादों में खो गए
छत खोजते - खोजते
दो पल रूह वर्षा में  पनाह ले बैठी
तेरी हंसी जीवीत कर मुझे फंसा बैठी।

-अरविन्द 

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